सभी की कोशिशें से ही सुधरे की शिक्षा की व्यवस्था
सभी की कोशिशें से ही सुधरे की शिक्षा की व्यवस्था
थिंक सहयोग एवं विकास संगठन ने शिक्षा की गुणवत्ता पर फिर प्रकाश डाला है इस संगठन के अनुसार पिछली बार जब भारत में नए साल 2009 में या पिसा टेस्ट दिया था भारत गणित विज्ञान और पढ़ने की की क्षमताओं में चीन से 12 साल पीछे था लगभग 20 पी ए एस ए यानी अंतरराष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम अंक पढ़ाई की 1 वर्ष के बराबर होता है इन अंकों के आधार पर पता चलता है कि शिक्षा में कौन सा देश किस से कितना आगे या पीछे है इस पैमाने पर पिछले 15 वर्षों में दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच बड़ा अंतर पैदा हो गया था 2010 और 2023 के बीच चीन में उच्च शिक्षा में छात्रों की सफल नामांकन दर 26.5% से बढ़कर 602% हो गई है जबकि भारत में या 10 साल 2017 से ही 25.5% के बीच स्थित है गणित विज्ञान और अक्षर पढ़ने जैसी बुनियादी साक्षरता में कमी की वजह से भारत की श्रम उत्पादकता चीन की तुलना में 44% कम हो गई है
इससे भी महत्वपूर्ण पहलुया है कि बुनियादी पढ़ाई में असमर्थता की वजह से विद्यार्थियों शिक्षकों और अभिभावकों में निराशा पैदा हो गई है यही वजह है कि कक्षा एक में दाखिला लेने वाले 10 में से 8 भारतीय छात्र आज तक नहीं पहुंच पाते हैं 25% शिक्षक कक्षा में भी नहीं आते हैं और माता-पिता वह विभाग को बड़े पैमाने पर यह चिंता नहीं होती है कि उनका बच्चा पढ़ लिख भी रहा है या नहीं वास्तव में इसे एक दूसरे चक्र पैदा हो गया है
समस्या शिक्षा पर खर्च करने की नहीं है बल्कि शिक्षा के प्रति समुदाय या समाज की भागीदारी और रवैया की है जिसे बच्चे की पढ़ने लिखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां वियतनाम एक मिसाल है विश्व बैंक के स्रोत्कर्ताओं ने पाया कि पैसा टेस्ट में छे अंकतों केवल सामुदायिक व समाज के सहयोग से हासिल किया जा सकते हैं जब माता-पिता ने छात्रों और शिक्षकों से अपेक्षा की तो देश की शिक्षा में सुधार आया पर ध्यान रहे आज वियतनाम शिक्षा पर प्रति व्यक्ति खर्च के मामले में विश्व स्तर पर सबसे निकले तीन देशों में आता है जब आप इसकी तुलना भारत की स्कूल प्रबंधन समितियां से करते हैं तो असमानता स्पष्ट हो जाती है वहीं 88% सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों ने ऐसी समितियां का गठन किया है लेकिन प्रधानाध्यापक शिक्षक और विशेष रूप से माता-पिता बच्चन की शिक्षा में अपनी भूमिका के प्रति पूरी तरह जागरूक नहीं है
इस चक्र को तोड़ना जरूरी है समाज के प्रमुख शुभचिंतकों के व्यवहार को बदलने के लिए संस्थागत हस्तक्षेप की जरूरत है शिक्षकों और अभिभावकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक तंत्र भजन बनाना होगा हमें अपने शिक्षकों को ज्यादा पढ़ने देना चाहिए समग्र के एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश शिक्षक अपना शक्ति 37% से भी कम समय शिक्षक गतिविधियों में लगाते हैं जिससे उनके पास सप्ताह में पढ़ने के लिए आज 13 घंटे फास्ट हैं ऐसे में शिक्षकों का ज्यादा ध्यान उन छात्रों पर केंद्रित हो जाता है जिनमें सीखने की क्षमता है दूसरे छात्रों को भी अनदेखा कर देते हैं काम आत्म सम्मान स्वायत्तता का निम्न स्तर और मानवता की कमी की वजह से भी शिक्षक हाथों उत्साहित होते हैं और स्त्री पद से पत्थर हो जाती है
हमारे शिक्षक के पास जो उपलब्ध समय है उसमें हमें प्रयास करना चाहिए कि उनके लिए प्रभावी ढंग से पढ़ना आसान बने उन्हें सही शिक्षण सामग्री के साथ जरूरी उपकरण प्रदान करने पड़ेंगे प्रौद्योगिकी में उन्हें सक्षम बनाना होगा मिसाल के लिए सत्य भारती स्कूलों में शिक्षकों को एक एक प्रदान किया गया था जो उन्हें बच्चों की क्षमता के आधार पर कार्य सपना की इस अध्ययन में पता चला है कि बच्चे ने न सिर्फ बेहतर सीखा है बल्कि 94% शिक्षा के पास से सहमत है कि वह एक विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है साथी शिक्षकों के प्रशासनिक बोझ को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है
इसके साथी शिक्षकों को सुनिश्चित शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से आगे बढ़ाने के रास्ते दिए जाने चाहिए सिर्फ एक तिहाई शिक्षक या मानते हैं कि उनका सेवा कारण प्रशिक्षण काफी हद तक फायदेमंद था शिक्षकों में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करने वालों को पहचानने की रूपरेखा बहुत प्रभावी साबित हो सकती है मिसाल के लिए मध्य प्रदेश में क्लासरूम हीरोज कार्यक्रम है जो अनुकरणीय शिक्षकों और बढ़ाने की उनकी सैलरी को प्रोत्साहित करता है अच्छे शिक्षकों को जब हम सम्मानित करते हैं तो शिक्षा में नया जोश पैदा होता है
हालांकि छात्र अपना सिर्फ 20% समय कक्षा में और बाकी समय घर पर बिताते हैं इसी वजह से शिक्षा की गुणवत्ता में माता-पिता को भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है वैश्विक अध्ययनों में से पता चला है कि मजबूत अभिभावकों की भागीदारी वाले स्कूलों में पढ़ने सीखने के परिणाम में सुधार की संभावना 10 गुना बढ़ जाती है
हालांकि एक पहलू यह भी है की माता-पिता के सामाजिक आर्थिक स्थिति उनके बच्चे की शैक्षणिक उपलब्धियां को प्रभावित करती है काम सेज वाले माता-पिता की तुलना में उच्च स्क वाले माता-पिता के बच्चे आमतौर पर बेहतर प्रदर्शन करते हैं अच्छी सामाजिक आर्थिक स्थिति वाले माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा पर प्रति सप्ताह 70 से अधिक मिनट अधिक खर्च करते हैं मतलब पढ़ने लिखने के मामले में दो समूह बन जाते हैं और जिनके बीच बड़ा अंतर पैदा हो जाता है
बाहरी हाल स्कूल में बच्चों के प्रदर्शन के बारे में माता-पिता को तमाम पर प्रस्ताव प्रासंगिक सूचनाओं देना जरूरी है मिसाल के लिए अमेरिका में बच्चों की अनुपस्थिति छूते हुए होमवर्क और काम ग्रेड जैसी जानकारी माता-पिता को देने से पाठ्यक्रम विफलताओं में 27% की कमी आई है
वास्तव में एक बच्चे की पढ़ाई के लिए पूरे एक गांव या समाज की जरूरत पड़ती है उसे गांव या समाज में शिक्षक माता-पिता और समाज के नेता भी शामिल है पढ़ाई से इन सभी को जोड़ने के तरीके खोजने से सबके व्यवहार में स्थाई बदलाव आएगा और ऐसा करना भारत के निपुण भारत मिशन को कामयाब बनाने के लिए भी जरूरी है